Wednesday, 2 May 2012

Uttrakhand News

ओखलकांडा के दिगौली गांव में गुलदार की दहशत

भीमताल। सुदूरवर्ती ओखलकांडा ब्लाक के दिगौली गांव में हफ्ते भर से गुलदार के आतंक के चलते ग्रामीण दहशत में हैं। हफ्ते भर के भीतर ही गुलदार गांव के दस मवेशियों को अपना निवाला बना चुका है।
दिगौली गांव के पूर्व प्रधान दिनेश भट्ट ने बताया कि गुलदार के आतंक के चलते ग्रामीण मवेशियों को चरने के लिए जंगल की ओर नहीं छोड़ रहे हैं और शाम होते ही अधिकांश ग्रामीण घरों में कैद हो जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वन विभाग के अधिकारियों से कई बार गुलदार को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाने की मांग की जा चुकी है लेकिन अभी तक इस संबंध में विभागीय स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। भट्ट ने जिला प्रशासन और वन विभाग के अधिकारियों से गुलदार से ग्रामीणों और उनके मवेशियों की सुरक्षा की मांग की है।

बस बोझ उठाओ, पैसा पाओ

हल्द्वानी। आंखों में पढ़लिखकर अच्छा अफसर बनने की ललक और बचपन बोझ तले। जिन कोमल कंधों पर किताबों का बस्ता होना चाहिए, वो सौ रुपये कमाने के लिए छह घंटे तक आठ किलो वजन उठाते हैं। दर्द हो तो चुप रहना है, क्योंकि यहां काम के पैसे मिलते हैं दर्द के नहीं। एक मई हिंदुस्तान के मजदूर वर्ग का दिन है लेकिन अमरपाल और बबलू जब मजदूरों की श्रेणी में ही नहीं तो फिर उनके लिए किस बात का लेबर डे। रही बात बाल श्रम कानून की तो इस कानून को देखने वाला यहां कोई नहीं। इसलिए बस बोझ उठाओ, पैसा पाओ, परिवार का हाथ बंटाओ, खाने का क्या है, वो तो बारात में मिल जाएगा।
हल्द्वानी में जजी रोड के पास रहने वाले दस साल के अमरपाल और 12 वर्ष के बबलू का बचपन बारातों में आठ किलो वजनी गमले के आकार की लाइट उठाने में बीतता है। जब दोनों मासूमों से बात की गई तो अमरपाल बोला मैं पढ़ना चाहता हूं। मेरी अफसर बनने की तमन्ना है। उसने कक्षा तीन तक पढ़ाई भी की है, पर परिवार की आर्थिक तंगी के चलते मां-बाप उसे आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं भेज सके। बबलू ने स्कूल और किताबों का आज तक मुंह नहीं देखा, मगर यह बालक कहता है स्कूल जाकर किताब देख कुछ सीखना चाहता हूं।
मेरा अरमान है पढ़ाई करूं और भविष्य के सपनों को उड़ान दूं, पर मजबूरियों ने हमारे कंधों पर बोझ थोप दिया है। सहालग का सीजन शुरू होते ही ये बच्चे बैंड वालों के पास पहुंच जाते हैं और काम का दाम सौ रुपये तय होता है। बोझ उठाने की शुरुआत तब होती है, जब अंधेरा हो जाए लेकिन अमरपाल और बबलू दोपहर तीन बजे से बैंड वालों की दुकान में डेरा डाल देते हैं। बारात के विवाह स्थल पहुंचने तक ये लाइट उठाते हैं और रोजाना कम से कम 800 मीटर से एक किलोमीटर की दूरी नापते हैं। रात में बारात का खाना खाया और फिर दौड़ लगाई घर को। भविष्य के ख्वाबों को साकार करने की कहीं से उम्मीद नजर नहीं आने के कारण आज बाल्यावस्था में ही लेबरी इन दो मासूमों की नियति बन चुकी है। ऐसे न जाने कितने अमरपाल और बबलू होंगे, जिनके सपने साकार होने से पहले ही पारिवारिक बदहाली के कारण बिखर जाते हैं। क्या ये मासूम शिक्षा का अधिकार अधिनियम की श्रेणी में नहीं। क्या इनके सपनों को देगा कोई पंख।

बीएससी के पेपर में प्रश्न के साथ उत्तर भी

हल्द्वानी। कुमाऊं विश्वविद्यालय की मुख्य परीक्षाओं में इस बार प्रश्नपत्रों में तरह - तरह की त्रुटियां सामने आ रही हैं। अब प्रश्न के साथ उसका उत्तर भी लिखकर आ रहा है।
एमबीपीजी कालेज में दूसरी पाली में मंगलवार को बीएससी तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों की जंतु विज्ञान विषय के द्वितीय प्रश्नपत्र की परीक्षा थी। परीक्षार्थियों ने प्रश्नपत्र पढ़ा तो वह पेपर में बहुविकल्पीय प्रश्न संख्या एक के छठे सवाल को देखकर चौंक गए। इस सवाल में पूछा गया था कि ईथालॉजी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया? इसके उत्तर के विकल्प के रूप में जीएस हिलेरी, अरस्तू, निका टिनबरजन ने, कार्ल वॉन फ्रि श ने। लेकिन छात्रों को इस सवाल का उत्तर ढूंढने में दिमाग नहीं लगाना पढ़ा क्योंकि अंग्रेजी में लिखे सवाल के साथ ही इसका उत्तर द वर्ल्ड ईथोलॉजी वास यूजड वाई जीएस हिलेरी छपा हुआ था। सवाल का उत्तर प्रश्न के साथ लिखा देख परीक्षार्थियों ने उसका उत्तर भी आसानी से उत्तर पुस्तिका में लिख दिया। परीक्षार्थियों ने प्रश्नपत्र में इस खामी के बारे में कक्ष परीक्षकों को भी बताया। जिस पर उन्होंने भी सवाल से ही उत्तर लिखने की सहमति दे दी। इधर, प्रश्नपत्र में इस खामी के बारे में कुलसचिव से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे मोबाइल पर संपर्क नहीं हो सका। मालूम रहे कि इससे पूर्व भी बीए राजनीतिशास्त्र के प्रश्नपत्रों में खामी का मामला सामने आ चुका है।

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