चौखुटिया, जागरण कार्यालय: मासी का सात दिवसीय ऐतिहासिक व पौराणिक सोमनाथ मेला शनिवार को समारोह पूर्वक संपन्न हो गया है। इस दौरान लोक कलाकारों के साथ-साथ स्कूली बच्चों ने अपनी कई मोहक प्रस्तुतियों के जरिये दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी। समापन पर पारंपरिक लोक कलाकारों एवं क्षेत्र के अनेक पूर्व सैनिकों को मेला समिति की ओर से पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित भी किया गया।
कुमाऊं के प्रमुख मेलों में शुमार मासी का सात दिवसीय सोमनाथ मेला इस वर्ष गत 6 मई से शुरू हुआ तथा इसी दिन मासी बाजार में परे रात भर सल्टिया मेला लगा। दो आलों द्वारा ओड़ा भेंटने की रस्म के साथ मुख्य मेला 7 मई को संपन्न हुआ। इसके साथ ही सरस्वती शिशु मंदिर परिसर में बने पंडाल में प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला चलती रही। आज सायं मेला का विविध रंगारंग-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही समापन हो गया। इस दौरान झनकार सांस्कृतिक मंच सैंणखरई-बागेश्वर के कलाकारों के साथ-साथ रामगंगा वैली स्कूल एवं राबाइंका मासी के बच्चों के कार्यक्रमों की धूम खूब रही। मंच के कलाकारों की युगल छपेली गीत नृत्य-ओ लोंडा मोहना, तेरी केमू वें गाड़ी एवं नान स्टाप रंगोली गीत की प्रस्तुति ने काफी रंग जमाया। साथ ही मासी को बाजारा..गीत ने भी वाहवाही लूटी।
समारोह में रागगंगा वैली स्कूल के नन्हीं छात्राओं ने धार्मिक गीत के बोल पर आधारित नृत्य प्रस्तुति काफी सराही गई। जबकि राबाइंका मासी की छात्राओं ने भी मोहक कार्यक्रम पेश किये। झनकार मंच के कलाकारों का नेतृत्व पूजा मेहरा ने किया। मंच संचालन गोपाल मासीवाल द्वारा किया गया। इस अवसर पर महेश वर्मा, अध्यक्ष गजेन्द्र बिष्ट, तारा दत्त शर्मा, चंद्र प्रकाश, विनोद मासीवाल, अर्जुन सिंह, रंगकर्मी जसी राम आर्य, गोपाल सिंह, सुभाष बिष्ट, जीवन लाल, संजय साह, हीरा बल्लभ, कांता रावत, व प्रेमा देवतला आदि मौजूद थे।
पहाड़ में बदल गए 'नशा नहीं रोजगार दो' के मायने
अल्मोड़ा/ बागेश्वर, जाका: एक दौर था जब महिला गृहस्थी बचाने को शराब के खिलाफ सड़क पर उतर पड़ती थी। मगर अब यही 'अबला' सगे-संबंधियों के शराब व्यवसाय को बचाने के लिए इस्तेमाल होने लगी है। कहना गलत न होगा कि पहाड़ में मदिरा के ठेके हासिल करने के लिए 'महिला' को ढाल बनाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। वहीं गृहणी की मौन स्वीकृति से 'नशा नहीं रोजगार दो' के मायने भी बदलने लगे हैं। अबकी अल्मोड़ा में 98 तो बागेश्वर में 17 महिलाओं के नाम पर लॉटरी डाली गई हैं, जो बीते वर्ष की तुलना में अधिक हैं।
दरअसल, पर्वतीय अंचल में शराब को अभिशाप माना जाता रहा है। आय के स्रोत कम होने के बावजूद तमाम लोग मदिरा की लत में उजड़ चुके हैं। पहाड़ में बढ़ते अपराध व परिवारों में दरार के लिए भी काफी हद तक शराब ही जिम्मेदार रही है। यही वजह है, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर व चंपावत जिले में समय-समय पर मातृशक्ति ने शराब के खिलाफ न केवल अभियान छेड़ा बल्कि सफल भी रहीं।
मगर व्यवसाय का रूप ले चुका शराब कारोबार व ठेके हासिल करने की होड़ में महिलाओं को इस्तेमाल करने का चलन बढ़ने लगा है। जिला आबकारी अधिकारी कार्यालय के अनुसार अल्मोड़ा में इस बार 62 विदेशी व 34 देसी शराब की दुकानों के लिए कुल 98 महिलाओं के नाम की लॉटरी डाली गई हैं। बीते वर्ष यह संख्या कम थी। उधर बागेश्वर में अबकी 17 महिलाओं के नाम का सहारा लिया गया है। पिछले साल यही संख्या 14 थी।
महिलाओं को कमजोर करने की साजिश: राधा बहन
अल्मोड़ा: शराब के खिलाफ आंदोलन चलाने वाली पर्यावरणविद् राधा बहन ने कहा, महिलाओं का नाम शराब कारोबार में घसीटना मानवाधिकार हनन है। महिलाएं शराब के लिए पहले भी लड़ती रहीं, आज भी लड़ रही हैं और आगे भी व्यवस्था न बदलने तक जंग जारी रहेगी।
राधा बहन ने कहा, 1966 में गरुड़ बागेश्वर से शराब के खिलाफ उन्होंने आवाज बुलंद की तो संकोची महिलाएं धीरे-धीरे सड़क पर उतर आई थीं। दशक तक चला आंदोलन गरुड़, थल, पिथौरागढ़, चमोली, टिहरी आदि कई जगहों पर सफल रहा। गांवों में कई दुकानें बंद कराई गई। ये महिलाओं का पुरुषार्थ था। बाद में तत्कालीन यूपी के मुख्यमंत्री ने पहाड़ में शराब से बंदी हटाने का निर्देश दिया। इसके बावजूद नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन मजबूती से खड़ा है। उन्होंने कहा, गरीबों की जेब से आखिरी पैसा खींचने के लिए महिलाओं का नाम डालना साजिश है और अपराध भी। महिलाओं को इसका विरोध करना चाहिए।
शराब ठेका तो व्यवसाय है। महिला कब तक अबला रहेगी। लॉटरी डाली जा रही है तो क्या बुरा है। बीते वर्ष जालली व भैंसियाछाना की अंग्रेजी वाइन शॉप दो महिलाओं के नाम पर छूटीं। जनजातीय क्षेत्रों में तो महिलाएं खुद शराब बनाकर आजीविका चला रही हैं।
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