Tuesday, 3 April 2012

सोना बना तिरुमला की फांस

 "सोना बना तिरुमला की फांस"

'तिरुपति।। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के लिए अजीबोगरीब स्थिति उस सोने को लेकर पैदा हो गई है, जो उसे 'आनंद निलयम-अनंत स्वर्णामयम' के लिए मिला है। इस प्रोजेक्ट के लिए अब तक 100 किलो से ज्यादा सोना प्राप्त हो चुका है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल इस प्रोजेक्ट पर ही अगले आदेश तक रोक लगा दी। जब टीटीडी ने दाताओं को सोना वापस करने के लिए पत्र लिखा तो पता चला कि कई लोगों के पते फर्जी हैं। 

ट्रेजरी में सोना 
टीटीडी के चीफ अकाउंट अधिकारी ओ. बालाजी का कहना है कि ज्यादातर दाता अपना सोना वापस नहीं लेना चाहते हैं। फिलहाल सोना ट्रेजरी में सुरक्षित रखा हुआ है। लेकिन जिन दाताओं के पते ही फर्जी हैं, उनके सोने का क्या किया जाए। इस पर हम पसोपेश में हैं। 

टीटीडी के पूर्व चेयरमैन डीके आदिकेसावुलु नायडू ने फरवरी 2011 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपील की कि तिरुपति मंदिर पर गोल्ड प्लेट चढ़ाने के प्रोजेक्ट को जारी रखने का आदेश दिया जाए। इससे पहले आंध्र हाई कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी क्योंकि इससे सदियों पुराने आलेख को गंभीर खतरा हो सकता है और तिरुमला मंदिर का ढांचा भी कमजोर हो सकता है। 

एएसआई को आपत्ति 
ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने भी हाई कोर्ट से कहा कि मंदिर की दीवारों पर सोने के प्लेट लगाने से उस पर खुदे अभिलेखों को नुकसान हो सकता है, इन्हें आने वाली पीढि़यों के लिए संरक्षित रखा जाना चाहिए। 

पुजारी भी खिलाफ 
दरअसल, डीके तिरुमला मंदिर को दक्षिण का स्वर्णमंदिर बनाना चाहते हैं। वर्ष 2008 में टीटीडी के चेयरमैन बनते ही उन्होंने अपना यह ड्रीम प्रोजेक्ट सामने रखा था। मगर मंदिर के मुख्य पुजारी ए. वी. रमन दीक्षुतुलु को इस प्रोजेक्ट पर घोर आपत्ति है। उनका कहना है कि इस मंदिर की दीवारों पर 10वीं से लेकर 18वीं सदी तक के अमूल्य अभिलेख खुदे हुए हैं। ये आलेख मुख्यत: तेलुगू , तमिल और देवनागरी में हैं। 

एसवी यूनिवर्सिटी के किरनक्रांत चौधरी का कहना है कि मंदिर की दीवारों के आलेख चोल पल्लव औरविजयनगर राजाओं के सामाजिक पहलुओं और उनकी परंपराओं पर रोशनी डालते हैं। दीवारों पर 640 साल पुरानेअभिलेख हैं 

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